Sunday, September 16, 2018

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498A पर क्या गाइडलाइन दी है?/ IPC ka section 498A kya hai? Supreme court ne section 498A par kya guideline di hai?

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498A पर क्या गाइडलाइन दी है?

धारा 498A , भारतीय दंड संहिता-

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498A पर क्या गाइडलाइन दी है?/ IPC ka section 498A kya hai? Supreme court ne section 498A par kya guideline di hai?

कब जोड़ी गई-

धारा 498A भारतीय दंड संहिता में 1983 में जोड़ी गई।

उद्देश्य-

भारतीय दंड संहिता में धारा 498A जोड़ने का उद्देश्य यह था कि पति और पत्ति के रिश्तेदारों द्वारा महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करना।

क्या है धारा 498A?

धारा 498A के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार होते हुए उस महिला के साथ क्रूरता से व्यवहार करेगा, वह व्यक्ति 3 साल तक जेल तथा जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

क्रूरता किसे कहते हैं?

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के स्पष्टीकरण  के अनुसार 'क्रूरता' का अर्थ है-
1. जानबूझकर किया गया कोई ऐसा कार्य जिससे
( क) उस महिला को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने की संभावना हो , या
( ख) उस महिला के जीवन , अंग, या स्वास्थ्य को( जो चाहे शारीरिक हो या मानसिक) गंभीर हानि या खतरा संभावना हो, या
2. किसी महिला को इस दृष्टि से तंग करना की
उसको या उसकी किसी रिश्तेदार को किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति कि कोई मांग पूरी करने के लिए  पीड़ित किया जाए, या
किसी महिला को इस कारण तंग करना कि उसका कोई रिश्तेदार ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहा है।

धारा 498A पर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन-

दहेज प्रताड़ना को लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के प्रावधानों में बदलाव के 27 जुलाई 2017 के दो जजों की पीठ के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने 2018 मे संशोधन किया है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने उस गाइडलाइन को हटा दिया है।
सबसे पहले जानते हैं 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई गाइडलाइन  क्या है।

2017 में धारा 498A पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन-

सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की पीठ ने यह गाइडलाइन "राजेश शर्मा विरुद्ध उत्तर प्रदेश राज्य" (2017) के मामले में दी जिसके प्रमुख बिंदु निम्न प्रकार से हैं-
1. हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति स्थापित की जाएगी जिसमें 3 सदस्य होंगे। परिवार कल्याण समिति की स्थापना जिला विधिक सेवा प्राधिकरण  करेगी।
2.परिवार कल्याण समिति 3 सदस्यों से मिलकर बनी होगी।
3.जिला एवं सत्र न्यायाधीश एक वर्ष में कम से कम एक बार परिवार कल्याण समिति के कार्य व सदस्यों का पुनरावलोकन करेगा।
4.परिवार कल्याण समिति के सदस्यों को किसी भी मामले में गवाह के रूप में न्यायालय में नहीं बुलाया जा सकता।
5. पुलिस और मजिस्ट्रेट धारा 498A के अंतर्गत प्राप्त होने वाली प्रत्येक शिकायत को सबसे पहले उस समिति के पास भेजेंगे।
6. शिकायत प्राप्त होने के बाद 1 महीने की अवधि में समिति अपनी रिपोर्ट शिकायत भेजने वाले अधिकारी को देगी।
7. जब तक समिति रिपोर्ट  नहीं देगी  शिकायतकर्ता के पति या उसके रिश्तेदार की  गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
8. जांच अधिकारी और मजिस्ट्रेट  उस रिपोर्ट के अनुसार आगे कार्रवाई करेंगे।
9. यदि किसी मामले में दोनों पक्षकारों के बीच समझौता हो जाता है तो जिला एवं सत्र न्यायाधीश उस मामले की कार्यवाही को बंद कर सकता है।
10.यदि लोक अभियोजन अधिकारी को 1 दिन का नोटिस देकर जमानत की अर्जी कोर्ट में दी जाती है तो जहां तक संभव हो उस जमानत की अर्जी  की सुनवाई उसी दिन की जाएगी।
11.विवादित दहेज सामान मिलना ही जमानत नहीं देने का आधार नहीं होगा।
12.रेड कॉर्नर नोटिस, क्लब्बिंग ऑफ केसेस , पासपोर्ट आदि को नही हटाया गया है और केवल यह बोला है कि सम्बंधित न्यायलय अपने विवेक और केस की मेरिट के आधार पर फैसला करे।

धारा 498A पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस (2018)-

यह गाइडलाइन सुप्रीम कोर्ट ने 'सोशियल एक्शन फॉर्म फॉर मानव अधिकार विरुद्ध भारत संघ'(2018) मामले में  दी जिस के प्रमुख बिंदु निम्नानुसार है-
1. परिवार कल्याण समिति एक अतिरिक्त न्यायिक प्राधिकार जो कि पुलिस और मजिस्ट्रेट की तरह शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकती है।
2. धारा 498A का मामला अजमानतीय और संज्ञेय है अतः पुलिस अभियुक्त को बिना के वारंट गिरफ्तार कर सकती है,यदि उपयुक्त कारण हो तो पुलिस अभियुक्त को शिकायत प्राप्त होते ही गिरफ्तार कर सकती है लेकिन पुलिस को सीआरपीसी धारा 41 का पालन करना होगा।
3. जमानत या अग्रिम जमानत देने की शक्ति अदालतों को होगी।
4. धारा 498A के अंतर्गत आने वाला मामला असंयोजनीय है,इसलिए जिला न्यायाधीश ऐसे मामलों में समझौता होने पर कार्यवाही को बंद नहीं कर सकता है। समझौता होने पर पक्षकारों को समझौते की अर्जी संबंधित हाई कोर्ट मैं लगानी होगी, और सीआरपीसी की धारा 482 के अनुसार हाईकोर्ट ही ऐसे मामलों में कार्यवाही को बंद करेगा।
5. दहेज का सामान मिलना ही जमानत की अर्जी को अस्वीकार करने का आधार नहीं होगा।
6.रेड कॉर्नर नोटिस, क्लब्बिंग ऑफ केसेस , पासपोर्ट आदि को नही हटाया गया है और केवल यह बोला है कि सम्बंधित न्यायलय अपने विवेक और केस की मेरिट के आधार पर फैसला करे। अर्थात पूर्व में राजेश कुमार के मामले में दिए गए जजमेंट को यथावत रखा है।
7.हर राज्य के पुलिस महानिदेशक को आदेश किया है की 498A के लिए केवल अच्छी तरह से ट्रैंड किए गए जांच अधिकारी ही जांच करे और उसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में अरनेश कुमार के निर्णय की पालना हर कीमत पर सुनिचित हो। यानी कि धारा 41 एवं 41A सीआरपीसी की पालना सुनिश्चित हो।
8. रही बात मेडिएशन की तो वो अभी भी जिन राज्यो में मेडिएशन सेल स्थापित की है वहाँ कॉउंसललिंग और मेडिएशन होगा लेकिन यह अनिवार्य नही होगा।
9. दूर से आने वाले प्रतिवादी को सुनवाई अटेंड करने से छूट दी जा सकती है। लेकिन इसके लिए नियमानुसार एप्लीकेशन प्रस्तुत करनी होगी।।
10. सर्वोच्च न्यायलय ने इस कानून में खामियों, इसके दुरुपयोग और तकनीकी फ़ॉल्टस को स्वीकार किया है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A की संविधानिकता- 

सर्वोच्च न्यायालय ने ' सतीश कुमार बत्रा विरुद्ध हरियाणा राज्य ' के मामले में कहा कि सिर्फ इस आधार पर की भारतीय दंड संहिता की धारा 498A का दुरुपयोग होगा इस धारा को असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता है।


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