FIR क्या होती है, पुलिस एफआईआर नही दर्ज करे तो
क्या करे?
'जीरो एफआईआर ' क्या होती है?
नमस्कार,
आज हम बात करेंगे कि एफआईआर क्या होती है और जब पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना करे तो क्या करना चाहिए।
एफआईआर क्या होती है?
FIR(एफआईआर )का पूरा नाम - प्रथम सूचना रिपोर्ट(first information report)
जब भी किसी व्यक्ति के साथ कोई गंभीर अपराध होता है तो उस अपराध की शिकायत कोई भी व्यक्ति पुलिस स्टेशन मैं दर्ज करा सकता है, ऐसी शिकायत को पुलिस अपनी डायरी में रजिस्टर करेगी और फिर उसकी एक कॉपी शिकायत लिखाने वाले को दे दी जाएगी ,इसे एफआईआर की कॉपी कहते हैं।
एफआईआर की कॉपी पर उस पुलिस स्टेशन की मुहर और थाना प्रमुख के हस्ताक्षर होनी चाहिए।
एफआईआर किन मामलों में की जाती है?
दो तरह के अपराध होते हैं-
1. संज्ञेय(cognizable)
2. असंज्ञेय(non-cognizable)
1.संज्ञेय अपराध गंभीर किस्म के अपराध होते हैं जैसे हत्या, डकैती, बलात्कार ,गोली चलाना, किसी का घर जला देना आदि,
सीआरपीसी की धारा 154 के तहत पुलिस को ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करना जरूरी है अगर कोई पुलिसवाला एफआईआर दर्ज करने से मना करें तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है ।
2. असंज्ञेय मामले मामूली अपराध होते हैं जैसे सामान्य मारपीट, गाली गलौज आदि,
ऐसे ही मामलों में एफआईआर दर्ज नहीं की जाती, पुलिस एनसीआर(NCR) काटती है और मजिस्ट्रेट को रेफर कर दिया जाता है।
एफआईआर कैसे लिखवाई जा सकती है?
•कोई भी पीड़ित व्यक्ति या अन्य व्यक्ति पुलिस स्टेशन जाकर लिखित या मौखिक एफआईआर दर्ज करा सकता है।
•आप पुलिस कंट्रोल रूम के जरिए कॉल करके भी अपनी एफआईआर रजिस्टर करवा सकते हो।
•एफआईआर रजिस्टर करने का कोई चार्ज नहीं होता है ,पुलिस को एफआईआर फ्री में लिखनी पड़ती है और एफआईआर की कॉपी भी शिकायतकर्ता को फ्री में मिलती है।
सर्वप्रथम एक सादा पेपर ले और उस पर 1 से 9 तक संख्या लिख ले, फिर उन सब के सामने K लिख ले
1.K- कब(समय और तारीख़)- एफआईआर में आप अपराध घटित होने का समय व तारीख लिखे।
2.K-किसने- अपराधी का नाम( ज्ञात या अज्ञात)।
3.K-कहा (जगह)- जहां अपराध घटित हुआ उस जगह का नाम।
4.K-किसको- अपराध किस के ऊपर कारित किया गया उसका नाम अर्थात पीड़ित का नाम।
5.K-किसलिये- यदि आपको अपराधी द्वारा अपराध कारित करने का कारण पता हो तो एफआईआर में उस कारण को भी लिखें।
6.K-किसके सामने ( गवाह)- यदि अपराध होते समय कोई व्यक्ति उपलब्ध है तो उसका नाम।
7.K-किससे ( हथियार)- अपराध कारित करने के लिए किस हथियार का उपयोग किया गया( जेसे -पिस्तौल , डंडे, रॉड, चैन , हॉकी, ईट)।
8.K- क्या किया ( अपराध)- यदि आपको अपराध का नाम पता हो तो अपराध का नाम जरूर लिखे।
9.K-किस प्रकार - अपराध करने का तरीका अर्थात अपराध किस प्रकार किया गया।
इस प्रकार आप 9k फॉर्मूला का उपयोग करके आसानी से एफआईआर को लिख सकते है ।
एफआईआर लिखने का 9k फार्मूला-
9k फार्मूला आसान भाषा में एफआईआर को लिखने का एक तरीका है।9K का मतलब होता है 9 बार अंग्रेजी का K अक्षर। आइए अब जानते हैं क्या है 9k फार्मूला-सर्वप्रथम एक सादा पेपर ले और उस पर 1 से 9 तक संख्या लिख ले, फिर उन सब के सामने K लिख ले
1.K- कब(समय और तारीख़)- एफआईआर में आप अपराध घटित होने का समय व तारीख लिखे।
2.K-किसने- अपराधी का नाम( ज्ञात या अज्ञात)।
3.K-कहा (जगह)- जहां अपराध घटित हुआ उस जगह का नाम।
4.K-किसको- अपराध किस के ऊपर कारित किया गया उसका नाम अर्थात पीड़ित का नाम।
5.K-किसलिये- यदि आपको अपराधी द्वारा अपराध कारित करने का कारण पता हो तो एफआईआर में उस कारण को भी लिखें।
6.K-किसके सामने ( गवाह)- यदि अपराध होते समय कोई व्यक्ति उपलब्ध है तो उसका नाम।
7.K-किससे ( हथियार)- अपराध कारित करने के लिए किस हथियार का उपयोग किया गया( जेसे -पिस्तौल , डंडे, रॉड, चैन , हॉकी, ईट)।
8.K- क्या किया ( अपराध)- यदि आपको अपराध का नाम पता हो तो अपराध का नाम जरूर लिखे।
9.K-किस प्रकार - अपराध करने का तरीका अर्थात अपराध किस प्रकार किया गया।
इस प्रकार आप 9k फॉर्मूला का उपयोग करके आसानी से एफआईआर को लिख सकते है ।
FIR कौन लिखवा सकता है?
FIR कोई भी व्यक्ति लिखवा सकता है, जरूरी नहीं है की fIR लिखवाने वाला व्यक्ति पीड़ित हो या पीड़ित का कोई दोस्त या संबंधी हो।
अगर पुलिस एफआईआर रजिस्टर करने से मना करे तो क्या करना चाहिए?
अगर किसी गंभीर मामले में पुलिस आपकी एफआईआर रजिस्टर नहीं कर रही है तो आप सीआरपीसी की धारा 154 (2 ) के तहत आप अपनी शिकायत S.P. को कर सकते हो, SP संबंधित थानेदार को एफआईआर रजिस्टर करने का आदेश देगा, इसके बावजूद भी किसी पीड़ित की एफआईआर रजिस्टर नहीं की जाती है तो पीड़ित cr.p.c की धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट के पास इसकी शिकायत कर सकता है, जहां मजिस्ट्रेट पुलिस को एफआईआर रजिस्टर करने का आदेश दे सकता है और फिर पुलिस को एफआईआर रजिस्टर करनी ही पड़ेगी।
•शिकायत करने वाले का यह अधिकार है कि एफआईआर की एक प्रति उसे निःशुल्क मिले।
•एफआईआर की प्रति पर पुलिस स्टेशन की मोहर व पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए।
• एफआईआर दर्ज करते समय पुलिस अपनी तरफ से कोई बात नहीं लिख सकता, न ही किसी बात को हाईलाइट कर सकता है।
•संज्ञेय अपराध की स्थिति में शिकायत दर्ज करने के बाद पुलिस अधिकारी उस सूचना को संबंधित व्यक्ति को पढ़कर सुनाए और लिखित शिकायत पर उसके हस्ताक्षर कराए।
•अगर किसी ने संज्ञेय अपराध की शिकायत पुलिस को लिखित रूप मे की है, तो पुलिस को एफआईआर के साथ उसकी शिकायत की प्रति लगाना जरूरी है।
•एफआईआर दर्ज कराने के लिए यह जरूरी नहीं है कि शिकायतकर्ता को अपराध के बारे मे व्यक्तिगत जानकारी हो या उसने अपराध होते हुए अपनी आंखों से देखा हो।•अगर किसी कारण कोई व्यक्ति किसी घटना की तुरंत सूचना पुलिस को नहीं दे पाता है तो उसे घबराना नहीं चाहिए, ऐसी स्थिति में उसको सिर्फ देरी का कारण बताना होगा।
•यदि एफआईआर कराने वाले व्यक्ति की पुलिस जांच के दौरान म्रत्यु हो जाती है , तो इस एफआईआर को म्रत्यु कालीन कथन (धारा 32 ,भारतीय साक्ष्य अधिनियम ) के रूप मे न्यायालय में पेश किया जा सकता है।
•अगर थानाधिकारी शिकायत दर्ज करने से मना करता है , तो शिकायत कर्ता उस शिकायत को रजिस्टर्ड क्षेत्रीय पुलिस उपायुक्त के पास भेज सकता है ।
•अगर थानाधिकारी शिकायत दर्ज करने से मना करता है तो आप इसकी शिकायत मजिस्ट्रेट से कर सकते हो।
•थानों में दर्ज एफआईआर को चोबीश घंटे के अंदर पुलिस की वेबसाइट या राज्य सरकार की वेबसाइट पर अपलोड किया जाए।
• सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी तकनीकी कारण से परेशानी आती है तो एफआईआर को 48 घंटे में अपलोड किया जाए।
• कश्मीर ,मेघालय , मिजोरम और सिक्किम जैसे प्रदेशों की भौगोलिक स्थति अलग हैं वहां सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर को 72 घंटे में अपलोड करने का समय तय कर दिया ।
एफआईआर से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदु-
•यदि अपराध संज्ञेय है तो थानाधिकारी को तत्काल एफआईआर दर्ज करनी चाहिए।•शिकायत करने वाले का यह अधिकार है कि एफआईआर की एक प्रति उसे निःशुल्क मिले।
•एफआईआर की प्रति पर पुलिस स्टेशन की मोहर व पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए।
• एफआईआर दर्ज करते समय पुलिस अपनी तरफ से कोई बात नहीं लिख सकता, न ही किसी बात को हाईलाइट कर सकता है।
•संज्ञेय अपराध की स्थिति में शिकायत दर्ज करने के बाद पुलिस अधिकारी उस सूचना को संबंधित व्यक्ति को पढ़कर सुनाए और लिखित शिकायत पर उसके हस्ताक्षर कराए।
•अगर किसी ने संज्ञेय अपराध की शिकायत पुलिस को लिखित रूप मे की है, तो पुलिस को एफआईआर के साथ उसकी शिकायत की प्रति लगाना जरूरी है।
•एफआईआर दर्ज कराने के लिए यह जरूरी नहीं है कि शिकायतकर्ता को अपराध के बारे मे व्यक्तिगत जानकारी हो या उसने अपराध होते हुए अपनी आंखों से देखा हो।•अगर किसी कारण कोई व्यक्ति किसी घटना की तुरंत सूचना पुलिस को नहीं दे पाता है तो उसे घबराना नहीं चाहिए, ऐसी स्थिति में उसको सिर्फ देरी का कारण बताना होगा।
•यदि एफआईआर कराने वाले व्यक्ति की पुलिस जांच के दौरान म्रत्यु हो जाती है , तो इस एफआईआर को म्रत्यु कालीन कथन (धारा 32 ,भारतीय साक्ष्य अधिनियम ) के रूप मे न्यायालय में पेश किया जा सकता है।
•अगर थानाधिकारी शिकायत दर्ज करने से मना करता है , तो शिकायत कर्ता उस शिकायत को रजिस्टर्ड क्षेत्रीय पुलिस उपायुक्त के पास भेज सकता है ।
•अगर थानाधिकारी शिकायत दर्ज करने से मना करता है तो आप इसकी शिकायत मजिस्ट्रेट से कर सकते हो।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश -
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है की•थानों में दर्ज एफआईआर को चोबीश घंटे के अंदर पुलिस की वेबसाइट या राज्य सरकार की वेबसाइट पर अपलोड किया जाए।
• सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी तकनीकी कारण से परेशानी आती है तो एफआईआर को 48 घंटे में अपलोड किया जाए।
• कश्मीर ,मेघालय , मिजोरम और सिक्किम जैसे प्रदेशों की भौगोलिक स्थति अलग हैं वहां सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर को 72 घंटे में अपलोड करने का समय तय कर दिया ।
Zero FIR क्या होती है-
सामान्य शब्दों में "शून्य एफआईआर "का अर्थ है - “किसी अपराध की घटनास्थल के थाने के दायरे से बाहर दूसरे थाने में शिकायत दर्ज कराना”उदाहरण - आपके साथ कोई घटना दिल्ली में घटित हुई है और आप दूसरे दिन राजस्थान में है तो आप राजस्थान में घटना से संबंधित जीरो FIR दर्ज करा सकते हैं, बाद मे fIR घटनास्थल वाले थाने में भेज दी जाती है और उस fIR को उसी प्रकार रजिस्टर किया जाता है जैसे कि वह पहली बार उसी थाने में लिखवाई जा रही है,
"zero FIR "में अपराध संख्या नहीं लिखी जाती है लेकिन जब जीरो FIR को घटनास्थल वाले थाने में भेजा जाता है तो उस थाने में अपराध संख्या लिख ली जाती है,
इस एफआईआर का नाम Zero FIR कैसे पड़ा?
क्योंकि जब किसी थाने में जीरो एफआईआर दर्ज की जाती है तो उसमें कोई अपराध संख्या नहीं दी जाती है ,अपराध संख्या की जगह जीरो लिखा जाता है इसलिए इसे जीरो एफआईआर कहते हैं।
Zero FIR के फ़ायदे
कई बार अपराध घटित होने पर पुलिस वाले शिकायत दर्ज नहीं करते हैं और क्षेत्राधिकार का बहाना लेकर शिकायत दर्ज करने से मना कर देते हैं इस कारण छानबीन शुरु नहीं हो पाती है और सबूत नष्ट हो जाते हैं, सबूतों को नष्ट होने से रोकने के लिए और तत्काल छानबीन शुरू करने के लिए जीरो एफ आई आर का प्रावधान किया गया।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण है रेप केस - रेप के मामलों में पीड़िता का तुरंत मेडिकल कराना होता है , रेप के मामलों में बिना क्षेत्राधिकार देखें पुलिस शिकायत दर्ज करती है और पीड़िता का मेडिकल करते हैं, इस कारण एफआईआर रेप के मामलों में बहुत उपयोगी है
Zero FIR कहां दर्ज होगी-
एफआईआर किसी भी राज्य के किसी भी जिले के किसी भी थाने में दर्ज की जा सकती है।
जैसे - आसाराम जी के केस में घटनास्थल जोधपुर (राजस्थान) था और जीरो एफआईआर दिल्ली के थाने में दर्ज कराई गई
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